अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर, कलाकारों ने बताया किस भाषा में बात करना उन्हें सबसे ज्यादा पसंद है

भाषा सिर्फ शब्द ही नहीं हैं, बल्कि यह हमारी संस्कृति, भावनाओं और पहचान को व्यक्त करती है। 21 फरवरी को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस भाषाई विविधता और अपनी मातृभाषाओं को संरक्षित करने के महत्व को मान्यता देता है। भारत में 22 आधिकारिक भाषाएं और हज़ारों बोलियां हैं, और इस दिन का खास महत्व है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि हमारी भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी पहचान और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। इस अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर, एण्डटीवी के कलाकारों ने बताया कि वो अपनी पहली भाषा पर गर्व करते हैं, उन शब्दों को सराहते हैं जो उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ते हैं, और यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि उनकी भाषा का असली रूप आने वाली पीढ़ियों तक बना रहे। इन कलाकारों में शामिल हैं- स्मिता सेबल, (‘भीमा‘ की धनिया), योगेश त्रिपाठी (‘हप्पू की उलटन पलटन‘ के दरोगा हप्पू सिंह) और शुभांगी अत्रे (‘भाबीजी घर पर हैं‘ की अंगूरी भाबी)। ‘भीमा‘ में धनिया का किरदार अदा कर रहीं स्मिता सेबल ने कहा, ‘‘ मैं इस पल में गर्व से कहती हूं कि ‘मला मराठी फार आवडतय!‘ एक सच्ची मराठी मुलगी होने के नाते, मुझे अपनी पहली भाषा में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में बेहद खुशी मिलती है। बचपन से, जब भी मुझे कोई दर्द या अप्रत्याशित स्थिति महसूस होती है, मेरे मुंह से पहला शब्द निकलता है-‘अरे देवा!‘ यह शब्द सीधे दिल से निकलते हैं। किसी से हालचाल पूछने के लिए ‘कसा आहेस?‘ कहना एक ऐसी गर्मजोशी का अहसास कराता है, जो सच में खास होती है। मराठी को और भी सुंदर बनाता है इसका हर दिन के पलों को व्यक्त करने का अनोखा तरीका। जैसे, जब घर से बाहर जाते हैं, तो ‘निघते मी‘ या ‘मैं जा रही हूं‘ कहने की बजाय हम कहते हैं ‘परत येईन‘ जिसका मतलब है मैं वापस आऊंगी।‘ यह एक दिल से दिया गया भरोसा है कि चाहे हम कहीं भी जाएं, हमारा इरादा हमेशा लौटने का होता है। यही है मराठी का सार- एक ऐसी भाषा, जो घर जैसा महसूस होती है!

योगेश त्रिपाठी ऊर्फ ‘हप्पू की उलटन पलटन‘ के दरोगा हप्पू सिंह ने कहा, ‘‘ उत्तर प्रदेश की बोली में कुछ सबसे अनोखे, ज़मीनी और मजेदार शब्द और वाक्य होते हैं, जो बातचीत को जीवंत और खास बनाते हैं। यहां किसी से मिलने पर आमतौर पर ‘का हाल बा?’ कहा जाता है। मैं अक्सर अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में कई स्थानीय शब्दों का इस्तेमाल करता हूं, जैसे ‘भोंदू’ (एक बेवकूफ इंसान), ‘चतुराई’ (अत्यधिक चतुरता), ‘ढकोसला’ (बकवास बातें), ‘ठोकाई’ (अच्छी डांट या पिटाई), और एक मेरा पसंदीदा शब्द, ‘गधा’ (गधा, जिसे मज़ाक में करीब दोस्तों को चिढ़ाने के लिए कहा जाता है)। जो लोग मुझे अच्छे से जानते हैं, वे अक्सर मुझे ‘बेवकूफ’ कहते हुए सुनते हैं, जिसका अंग्रेजी में मतलब है ‘फूल’। जब मैं कोई मूर्खतापूर्ण काम करता था या पढ़ाई से बचता था, तो मेरी माँ अक्सर मुझे ‘बेवकूफ‘ कहा करती थीं (हंसते हैं)। ‘‘ शुभांगी अत्रे ऊर्फ ‘भाबीजी घर पर हैं‘ की अंगूरी भाबी ने कहा, ‘‘इंदौर की मेरे दिल में खास जगह है और इसके कई कारण हैं- यहां का स्वादिष्ट खाना, रंग-बिरंगे कपड़े, और सबसे महत्वपूर्ण, यहां के अद्भुत लोग। लेकिन जो चीज़ मुझे सबसे ज्यादा पसंद है, वो है मेरी मातृभाषा। हम अक्सर एक-दूसरे से ‘भाईको‘ (कैसे हो?) कहकर मिलते हैं, और जवाब में सामने वाले से एक प्यारी सी मुस्कान मिलती है। मेरी पसंदीदा शब्द है ‘भन्नाट‘ (फैंटास्टिक)। जब इसे सही से बोला जाता है, तो इसका मजा ही कुछ और होता है, और मैं इसे रोज़मर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल करती हूं-इतना कि अब सेट पर भी लोग इसे बोलने लगे हैं! इस अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर, मैं सभी से कहूंगी कि अपनी मातृभाषा को अपनाएं और उस पर गर्व करें। सिर्फ आज ही नहीं, बल्कि हर दिन!‘‘

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